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註釋

एक धुँधली सी याद है, तारीख तो ध्यान नहीं लेकिन देर शाम का वक़्त था। एग्जिबिशन कम स्पोर्ट्स मीट के लिए हम लोग डोंगरगढ़ या शायद दुर्ग के लिए सफर में थे। स्टेशन खरसिया का था और सवारी एक लोकल ट्रेन थी। दरअसल छोटी दूरी के सफर के लिए हमें रिजर्व सीट नहीं दी जाती थी। एक पूरी बोगी में दूसरे पैसेंजर्स के साथ हमारी भी पूरी टीम जैसे-तैसे एडजस्ट हो चुकी थी। हमारे एस्कॉर्ट के रूप में एक टीचर, मैडम अरूणा राठौर, जो कि हमारी केमिस्ट्री टीचर रहीं हैं, वो विंडो सीट पर बैठी हुई थीं। आसपास लड़कियों और लड़कों के झुंड थे। हम सब इतने खुश थे... इतने खुश थे... इतने खुश थे कि उसे जाहिर करना मुश्किल है। यहाँ तीन बार 'इतने खुश थे' इसलिए लिखा गया है क्योंकि आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते पढ़ाई के दौरान जब आपको ट्रैवलिंग का मौका मिलता है एक बोर्डिंग स्कूल में, तो वहाँ पढ़ने वाले बच्चे के लिए उस खुशी को मापने का कोई पैमाना सचमुच नहीं होता। बहरहाल हम सब बहुत अच्छे मूड में थे, हँसी-मजाक, ठिठोली, बदमाशी हर चीज वहाँ जारी थी। मैं अरुणा मैडम के ठीक सामने खड़ा था, हम सब चहक रहे थे शायद जरूरत से ज्यादा ही और इसी एक्साइटमेंट में अनजाने में मुझसे एक भूल हुई और मेरी एक हरकत से मैडम की साड़ी गंदी हो गई।

एक झटके में मेरी सारी मस्ती डर में तब्दील हो गई। काटो तो खून नहीं वाले हालत में मैंने उनके पाँव पकड़ लिए और माफी माँगी। मैंने सोचा था डाँट पड़ेगी और दो बातें सुना कर मुझे आखिर में माफ किया जाएगा, लेकिन उन्होंने मुझे बड़े प्यार से उठाया और कहा माफी माँगने की जरूरत नहीं, हो जाता है कभी-कभी। वो ऐसी ही हैं शुरू से, हद से ज्यादा नरम और धीरज रखने वाली। तब मैं छोटा था, कुछ कर नहीं सकता था, लेकिन मैंने एक वादा किया था कि उस गलती के एवज में किसी दिन मैडम को ‘एक टोकन ऑफ़ लव’, शायद साड़ी या कुछ और दूँगा और कहूँगा ये उस दिन की गलती के लिए है मैडम, जब आपने मुझ पर जरा भी नाराजगी नहीं दिखाई थी। आज लगभग 20 साल से ज्यादा का वक़्त हो गया वो वादा अधूरा था, लेकिन आखिरकार मुझे एक मौका मिला वो टोकन ऑफ लव उन्हें देने का, तो ये मौका मैं भला कैसे हाथ से जाने देता! आज उस दिन की गलती के लिए एक बार फिर से उन्हें सॉरी कहता हूँ और वो टोकन ऑफ़ लव आप सबके साथ साझा करता हूँ।