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Pracheen Bharat Mein Doot-Paddhati
Anand Prakash Gaud
出版
Lokbharti Prakashan
, 2007-09-01
ISBN
8180311597
9788180311598
URL
http://books.google.com.hk/books?id=Cq7TXGTT2MUC&hl=&source=gbs_api
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註釋
विश्व के युगों-युगों के लम्बे इतिहास में राज्य के प्रभु-शासक सदा से दूत-पद्धति अपनाते आए हैं। विश्व इतिहास में भारत का प्राचीनतम स्थान है। उसमें भी वैदिक युग तो विश्व की सभ्यता और संस्कृति तथा शासन का आदिस्रोत प्रतीत होता है। वैदिक काल से ही दूत के उपयोग का प्रमाण प्राप्त होता है। रामायण और महाभारत काल में बड़ी समर्थता के साथ उनकी कार्य-पद्धति साकार हुई और फिर तो इस पद्धति में विकास और गठन की निपुणता ने क्रमशः जीवन्त रूप ग्रहण कर लिया। मौर्य, कुषाण, गुप्त, हर्ष, चोल, चालुक्य और पाण्ड्य आदि राजवंशों के शासन-काल में दूत-पद्धति का उपयोग देशी तथा विदेशी राज्यों के साथ किया गया। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में प्राचीनतम दूत-पद्धति, दूत के गुणों अथवा योग्यताओं, उनके विभिन्न प्रकार और परिस्थिति, विशेषाधिकार, वेतन, कार्य एवं निर्देश के साथ ही प्राचीन भारत में आए हुए विदेशी दूतों तथा विदेशों में भेजे गए भारतीय दूतों आदि का विस्तृत अध्ययन उचित आधारों एवं प्रमाणांे द्वारा निष्पन्न करने का प्रयास किया गया है। जहाँ तक सम्भव हो सका है, मूल प्रमाणों एवं प्रतिष्ठित अनुवादों का ही प्रयोग किया गया है।