यह पुस्तक मेरे पूज्य पिता जी, स्वर्गीय इंजीनियर जी द्वारा संकलित और लिखी गयी है , पिता जी ने इस पुस्तक के मौलिक लेखक होने का दावा नहीं किया, क्योंकि इसे उन्होंने १५ से २० सालों तक विभिन्न अखबारों जैसे की अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान के सम्पादकीय पढ़कर तथा ओशो, गाँधी, बुद्ध तथा अन्य विचारकों की पुस्तकें पढ़ कर गढ़ा हैl 73 वर्षों की संघर्ष भरी जिंदगी का अनुभव और सैकड़ों संपादकों और विचारकों के अनुभवों को संकलित करती हुई यह पुस्तक अपने आप में एक काव्य।
जिस तरह जंगल का सौंदर्य उसके बिखराव तथा विविधता में है ना की व्यवस्था में, वैसा बिखराव तथा विविधता का सौंदर्य इस पुस्तक में मिलेगा। इस पुस्तक का कोई आरंभ या अंत नहीं मिलेगा, यह पुस्तक रोज खुशबू बदलने वाले इत्र की तरह है। यह पुस्तक कभी ना खत्म होने वाली गाथा है। यह हर रोज पाठक को चिंतन और मनन के लिए पर्याप्त सामग्री प्रदान करेगी। इस पुस्तक को आप किसी भी पृष्ठ से पढ़ना प्रारंभ कर सकते हैं, आपको कभी भी सातत्य की कमी का एहसास नहीं होगा।
इस पुस्तक में यदि कहीं व्याकरण और मात्राओं की त्रुटि मिले तो उसका जिम्मेदार मैं हूं ना की पिताजी क्योंकि इस पुस्तक को वर्तमान स्वरूप में संपादित मैंने ही किया है।