वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर और सोनिया गाँधी से जुड़ी यादें सिर्फ़ यादें नहीं हैं बल्कि यह भारत के उस राजनीतिक कालखंड का दस्तावेज़ हैं जो सबसे ज्यादा हलचल भरे रहे हैं। भारत का राजनीतिक इतिहास लिखने की परम्परा अभी प्रारम्भ नहीं हुई है लेकिन जब भी इतिहास लिखा जाएगा यह कालखंड उसका अनिवार्य अंग होगा। यह राजनीतिक इतिहास का वह हिस्सा है जिसकी घटनाएँ छुपी रहीं, लोगों की नज़रों में आई ही नहीं जबकि इसका रिश्ता राजीव गाँधी, वी. पी. सिंह, चंद्रशेखर और सोनिया गाँधी से सीधा रहा है और यह सिलसिला मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने पर खत्म होता है।
इस देश में वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर और सोनिया गाँधी का सही मूल्यांकन आज तक नहीं हुआ। वी.पी. सिंह ने सत्ता के समीकरण हमेशा के लिए बदल दिए, वह भी यह कहते हुए, “मेरी टाँग टूट गई तो क्या हुआ मैंने गोल तो कर दिया।" जीवन की आखिरी साँस तक वे गरीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों, वंचितों, किसानों, और झुग्गी झोपड़ी वालों के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने कभी आराम नहीं किया। सभी विपक्षी नेताओं के आग्रह के बाद भी उन्होंने 1996 में प्रधानमंत्री पद स्वीकार नहीं किया, बल्कि जिसे उस वक़्त प्रधानमंत्री बनाना चाहिए था, उसका प्रस्ताव रखा।
चंद्रशेखर भारतीय राजनीति के विलक्षण पुरुष थे। इंदिरा गाँधी के नज़दीक रहते हुए उन्होंने मोरारजी देसाई का विरोध किया। कांग्रेस के बँटवारे में, इंदिरा गाँधी के क़दमों को समाजवादी धार उन्होंने दी। वे जे.पी. के ऐसे शिष्य थे जिन्हें जे.पी. ने कभी अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था पर जनता ने उन्हें जे. पी. का राजनीतिक उत्तराधिकारी मान लिया था।
इतिहास कभी बेहद निर्मम हो जाता है। यदि उसने वी.पी. सिंह और चंद्रशेखर को, दो साल भी सत्ता में रहने दिया होता तो शायद देश का इतिहास कुछ और होता। उन्होंने बहुत से महत्वपूर्ण लोग भारतीय राजनीति को दिए पर कभी किसी को अपने साथ बाँधा नहीं। 2004 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के आग्रह पर उन्होंने सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपनी सारी ताकत लगा दी थी। उनके विचार उनकी किताबों में हैं, जो राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए टेक्स्ट बुक की तरह हैं।
प्रधानमंत्री पद किसी के दरवाज़े पर थाली में सजकर पहुँचा हो और वह अपनी जगह दूसरे को प्रधानमंत्री बना दे ऐसा बहुत कम होता है, लेकिन सोनिया गाँधी ने ऐसा ही किया। जब राजीव गाँधी की हत्या हुई, उस समय भी वै प्रधानमंत्री बन सकती थीं पर उन्होंने नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाने का इशारा कर दिया था। दूसरी बार 2004 में वी. पी. सिंह ने उन्हें थाली में सजाकर प्रधानमंत्री पद का प्रस्ताव भेजा पर उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया। लोग राज्यमंत्री बनने के लिए कुछ भी कर जाते हैं, वहाँ प्रधानमंत्री न बनना सोनिया गाँधी का ऐसा गुण है जिसकी जितनी तारीफ़ होनी चाहिए उतनी हुई नहीं। मेरा उनसे बहुत सम्पर्क नहीं रहा पर 2004 में जितना सम्पर्क रहा उसने मुझे उन घटनाओं के बीच रहने का अवसर प्रदान किया जिसकी वजह से मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनें जबकि बनना सोनिया जी को था।
भारतीय राजनीति के यह तीनों व्यक्तित्व उस सम्मान से वंचित रहे जो सम्मान उन्हें मिलना चाहिए था। हो सकता है यह किताब उस कमी को कुछ प्रतिशत पूरा करे। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि मुझे इतिहास की उन घटनाओं को लिखने का मौक़ा मिला जिन्हें मुझे लिखना ही चाहिए था। समय ने मुझे बहुत सी घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी बनाया इसके लिए मैं वक़्त का बहुत-बहुत आभारी हूँ।
यह किताब आपको उन घटनाओं से परिचित करवाती है जिसकी वजह से राजीव गाँधी को सत्ता से जाना पड़ा था और जिन वी. पी. सिंह की वजह से उनकी सत्ता गई थी उन्हीं वी. पी. सिंह ने उनकी पत्नी सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए सारी घटनाओं का रुख मोड़ दिया था। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि यह वी.पी. सिंह की इंदिरा गाँधी को श्रद्धांजलि थी जिन्हें वे अपने सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन में हमेशा आदरणीय स्थान देते रहे, वैसे ही जैसे तमाम मतभेदों के बाद भी और आपातकाल में जेल में रहने के बाद भी चंद्रशेखर हमेशा इंदिरा गाँधी के प्रशंसक बने रहे। ये दोनों हमेशा देश को लेकर चिंतित रहते थे, अपने राजनीतिक जीवन को लेकर नहीं। इन्हीं गुणों ने इन्हें महान बना दिया ।